48 बच्चों की मौत का भयावह मंजर देख अटकी रहीं सांसें, बहते रहे आंसू
गोरखपुर (जेएनएन)। बीआरडी मेडिकल कालेज के 100 नंबर इंसेफ्लाइटिस वार्ड में हर दिन जिंदगी और मौत की जंग देखने को मिलती है लेकिन शुक्रवार को वहां का मंजर कुछ और ही भयावह था। मौत का पलड़ा जिंदगी पर भारी था। इसका भय वहां मौजूद हर उस व्यक्ति पर था, जिसके कलेजा का टुकड़ा इस जंग में हार की कगार पर खड़ा था। टंगी सांसें और आंखों से बहते आंसू और उन सबके बीच जेहन में उठ रहे व्यवस्था पर सवाल की छटपटाहट हर तीमारदार के चेहरे पर साफ झलक रही थी।
कालेज में आक्सीजन खत्म होने का सीधा दर्द भले ही मासूम झेल रहे हों लेकिन उसकी टीस हर पल उनके तीमारदारों में देखने को मिली। अपनी गलती छिपाने के लिए डाक्टरों द्वारा बार-बार आइसीयू केबिन के गेट को बंद कर दिया जाना, तीमारदारों को और भी सशंकित किए हुए थे। कइयों को तो यह भय भी सता रहा था कि पता नहीं उनका लाडला या लाडली अब इस दुनिया में हैं भी या नहीं। अवसर मिलते ही केबिन के बाहर जाकर निहार आते लेकिन पास तक न जाने की बाध्यता उनकी छटपटाहट को और बढ़ा रही थी। पडऱौना से आए छह दिन के बच्चे के पिता मृत्युंजय तो अपना दर्द कहकर फूट-फूट कर रोने लगे। बोले, जब आक्सीजन ही नहीं है तो अब बच्चे की उम्मीद भी क्या करना? कभी भी मौत की सूचना के लिए तैयार हूं। अभी मृत्युंजय अपना दर्द बयां कर रही रहे थे कि हाथ में 11 महीने के बच्चे का शव लिए रानीपुर बस्ती के दीपचंद आक्रोशित चेहरे के साथ वार्ड से बाहर निकले। बोले, इस अस्पताल में कोई इलाज को न आए। यहां न डाक्टर जिम्मेदार हैं और न कर्मचारी। जब आक्सीजन ही नहीं तो भर्ती क्यों कर रहे समझ में नहीं आ रहा। मेरी बेटी को लील लिया।
खोराबार क्षेत्र के नौआ आउल निवासी राधेश्याम सिंह अपनी इलाजरत पोती को लेकर पूरी तरह निराश थे। उनका कहना था कि दवा तो पहले से खरीद रहे थे और आक्सीजन भी खत्म है। ऐसे में मरीज भगवान भरोसे है। तभी डबडबाई आखों के साथ हाथ में बेटी प्रतिज्ञा का शव लेकर अस्पताल से निकले देवरिया निवासी अमित सिंह बेहद आक्रोशित थे। वह यह बोलते हुए निकल गए कि मेडिकल कालेज के डाक्टरों ने उनकी बेटी को मार डाला। बिना आक्सीजन के इलाज करते रहे लेकिन रेफर नहीं किया। यह तो महज बानगी है, वार्ड के बाहर मौजूद सभी तीमारदार इसी मनोदशा से गुजर रहे थे, रह-रह कर वहां उसे उठ रही चीख-पुकार उस खराब मनोदशा की तस्दीक थी।