Monday 22 January 2018

27 आप MLA’s पर नही चलेगा लाभ का पद मामला, EC ने किया साफ़

दिल्ली के अस्पतालों में रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन और सदस्य का पद लाभ का पद नहीं, राष्ट्रपति के आदेश में चुनाव आयोग ने अपनी सिफारिश में किया इसका जिक्र।
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Delhi News Dated 22/01/2018
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रोगी कल्याण समिति के अधिकार
  • अस्थाई कर्मचारियों की भर्ती का अधिकार (इसमें डॉक्टर भी शामिल है)
  • दो लाख रुपये तक के निर्माण कार्य का काम समिति अध्यक्ष की मंजूरी से.
  • अस्पताल परिसर में दुकान किराए या लीज पर देने का अधिकार जिसकी कमाई समिति के पास आती है.
दिल्ली सरकार के सूत्रों के मुताबिक 
  1. लाभ के पद के दायरे में रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष का पद नहीं आता.
  2. दिल्ली विधायक अयोग्यता निवारण कानून 1997 में इस पद को लाभ के पद के दायरे बाहर किया गया है.
  3. पॉइंट 11 में जो हॉस्पिटल एडवाइजरी कमिटी है उसको 2009 में शीला दीक्षित ने नाम बदलकर रोगी कल्याण समिति कर दिया था.
  4. पॉइंट 14 के मुताबिक सरकार की बनाई किसी भी सोसाइटी के अध्यक्ष का पद लाभ के पद के दायरे से बाहर होगा (रोगी कल्याण समिति भी एक सोसाइटी है).
क्या है पूरा मामला?
दरअसल कानून के एक विद्यार्थी विभोर आनंद ने चुनाव आयोग को दी अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि 27 आप विधायक रोगी कल्याण समिति में अध्यक्ष के पद पर होने के नाते लाभ के पद पर हैं लिहाजा इनकी विधायकी रद्द की जाए।शिकायत में कहा गया है कि रोगी कल्याण समिति के  में विधायक सदस्य के तौर पर तो हो सकता है लेकिन अध्यक्ष के पद पर नहीं।
आप के 27 विधायक रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष और सदस्य थे। इन पर कथित ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का आरोप था जोकि दिल्ली के एक वकील/नागरिक द्वारा लगाया गया था लेकिन अब चुनाव आयोग ने अपनी सिफारिश में साफ़ किया है कि रोगी कल्याण समिति में चेयरमैन/ वाईस चेयरमैन का पद पहले से ही लाभ का पद से बाहर है |
कौन हैं ये 27 विधायक
  1. अल्का लाम्बा- चांदनी चौक
  2. शिव चरण गोयल- मोती नगर
  3. बन्दना कुमारी- शालीमार बाग
  4. अजेश यादव- बादली
  5. जगदीप सिंह- हरी नगर
  6. एस के बग्गा- कृष्णा नगर
  7. जीतेन्द्र सिंह तोमर- त्री नगर
  8. राजेश ऋषि- जनकपुरी
  9. राजेश गुप्ता- वज़ीरपुर
  10. राम निवास गोयल- शाहदरा
  11. विशेष रवि- करोल बाग
  12. जरनैल सिंह- तिलक नगर
  13. नरेश यादव- मेहरौली
  14. नितिन त्यागी- लक्ष्मी नगर
  15. वेद प्रकाश- बवाना
  16. सोमनाथ भारती- मालवीय नगर
  17. पंकज पुष्कर- तिमारपुर
  18. राजेंद्र पाल गौतम- सीमापुरी
  19. कैलाश गहलोत- नजफ़गढ़
  20. हज़ारी लाल चौहान- पटेल नगर
  21. शरद चौहान- नरेला
  22. मदन लाल- कस्तूरबा नगर
  23. राखी बिड़लान- मंगोलपुरी
  24. मोहम्मद इशराक- सीलमपुर
  25. अनिल कुमार बाजपाई- गांधी नगर
  26. कमांडो सुरेंद्र- दिल्ली कैंट
  27. महेंद्र गोयल- रिठाला
ख़ास बात ये है कि इन 27 विधायकों में 10 विधायक ऐसे है जो पहले से संसदीय सचिव बनाये जाने पर लाभ के पद के आरोप में विधायकी जाने का खतरा झेल रहे हैं
पढिये आदेश के कॉपी :-

Sunday 21 January 2018

2 साल से लोकपाल पर मुहर नही लगाई लेकिन मात्र 24 घंटे में MLA अयोग्य

लाखों लोगो के फायदे का फैसला दो साल से रुका पड़ा है, लेकिन मात्र 24 घंटे में MLA योग्य 
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दिल्ली News Dated 21/01/18
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राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने चुनाव आयोग की भेजी गयी अनुशंसा पर दिल्ली की आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ का पद मामले में अयोग्य घोषित कर दिया है , इतना ही नही इतवार होने के बावजूद राजपत्र तक जारी करवा दिया है |


भारत में राष्ट्रपति केंद्र के इशारों से कार्य करता है और केंद्र की ही सलाह मानता है यानी ये पद केवल एक मुहर नुमा पद है | लेकिन कल ही चुनाव आयोग द्वारा भेजी सिफारिश पर 24 घंटे के भीतर ही मान्य कर देना किसी भी प्रकार से न्यायोचित प्रतीत नही हो रहा है |

कुछ ऐसे बिंदु जो न्याय-अन्याय को स्पष्ट करते है :- पढिये 

1. विधायकों ने पैसा नही लिया, गाडी नही ली, बंगला नही लिया लेकिन फिर भी लाभ का पद माना गया |
2. दिल्ली सरकार ने नियुक्ति बिना LG की मंजूरी के की, यानी ये अवैध थी, तो फिर कैसा केस ??
3. दिल्ली विधानसभा ने पूर्व तिथि से मान्य होने वाला बिल पास करके LG को भेजा जोकि राष्ट्रपति को भेजा गया लेकिन उसको एक साल बाद वापिस कर दिया गया, जबकि शीला दीक्षित सरकार में ये सब आसानी से पास कर दिया गया |
4. हाई कोर्ट ने भी नियुक्ति खारिज की और कहा कि ऐसा पद है ही नही, फिर किस बात का केस ?
5. चुनाव आयोग ने इस बात की सुनवाई की, कि क्या केस चलाया जाए या नही ??
6. वास्तव केस की कोई सुनवाई अभी तक नही हुई |
7. जून 2017 के बाद से विधायकों को सुनवाई के लिए नही बुलाया गया |
8. कार्यकाल समाप्ति से एक दिन( कार्यदिवस) पहले चुनाव आयुक्त श्री जोती ने सिफारिश कर दी |
9. विधायक दिल्ली हाई कोर्ट गए, तो वहां चुनाव आयोग के वकील ने कहा की जानकारी नही है और कोर्ट को गुमराह भी किया ताकि अंतरिम राहत ना मिल सके |
9. मात्र 24 घंटे में राष्ट्रपति ने सिफारिश मान भी ली |



चुनाव आयोग का विधायकों को दिया आखिरी आदेश |


जबकि दिल्ली सरकार के बहुत से महत्वपूर्ण जनहित कानून बिल 2 साल से राष्ट्रपति के पास लम्बित है -

जैसे - लोकपाल बिल , सिटीजन चार्टर बिल आदि

''जिस विधानसभा और सरकार के 20 विधायकों के निलंबन की सिफारिश को महज़ 2 दिन में राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी, उसी सरकार और विधानसभा के लोकपाल जैसे कई सारे अहम कानून राष्ट्रपति के पास 20 महीने से लंबित है।''


भाजपा के नेता यशवंत सिन्हा ने भी बताया न्याय के खिलाफ




बिना लाभ का हानि वाला पद

संविधान के जानकार और पूर्व लोकसभा सचिव PDT आचार्य ने भी कहा है बहुत कुछ कहा है , पढिये उनका पत्र एक चैनल के नाम -




कैसे ये मामला वास्तव में होने वाले लाभ का नही है 

 

क्या था नियुक्ति का आदेश !!



क्या कहा केजरीवाल ने ???

ऊपर वाले ने 67 सीट कुछ सोच कर ही दी थी। हर क़दम पर ऊपर वाला आम आदमी पार्टी के साथ है, नहीं तो हमारी औक़ात ही क्या थी। बस सच्चाई का मार्ग मत छोड़ना। - अरविन्द केजरीवाल

Saturday 20 January 2018

चुनाव आयोग में सामूहिक जन संहार

लोकतंत्र की एक और बड़ी संस्था चुनाव आयोग के अंदर से लोकतंत्र के चीखने की आवाज़ सामने आ रही है
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Delhi News Dated 20/01/2018
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चार जस्टिस ने जो ‘आत्मा की आवाज़’ देश के सामने रखी थी, उसके अभी हफ्ते भर ही बीते हैं कि लोकतंत्र की एक और बड़ी संस्था चुनाव आयोग के अंदर से लोकतंत्र के चीखने की आवाज़ सामने आ रही है। मुख्य चुनाव आयुक्त के हाथों रिटायरमेंट से पहले 20 विधायकों का ‘सामूहिक जन (प्रतिनिधि) संहार’ हुआ है। इन घटनाओं के बाद जनता के मन-मंदिर में लोकतंत्र के प्रति आस्था कांप गयी है। जस्टिस कितना सच बोल रहे थे- ख़तरे में है लोकतंत्र, ख़तरे में है देश।

सवालों में CEC, रिटायरमेंट प्लान बता रही है AAP
सोमवार को मुख्य चुनाव आयुक्त एके ज्योति रिटायर हो रहे हैं और शुक्रवार को इतना बड़ा फैसला! दिल क्यों नहीं कांपा। आत्मा क्यों नहीं कांपी। कहां रह गयी नैतिकता। राजनीति की भाषा ऐसे मौकों के लिए बहुत ही बुरी होती है। तभी तो आम आदमी पार्टी के नेता इसे CEC का ‘रिटायरमेंट प्लान’ बता रहे हैं। पीएम मोदी के प्रति निष्ठा दिखाने का एक मौका बता रहे हैं जिनके साथ गुजरात में वे काम कर चुके हैं। बात सही और गलत की नहीं है। बात ये नहीं है कि 20 विधायकों के ख़िलाफ़ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला सत्य है या असत्य। बात है विश्वसनीयता की। रिटायरमेंट से ठीक पहले इस फैसले पर उंगली उठेगी ही।
चीखता हुआ महसूस हो रहा है लोकतंत्र
न्याय करने का अधिकार ईश्वर हर एक इंसान को दे रखा है। इसी कसौटी पर कोई पड़ोसी भी भला आदमी या बुरा आदमी कहलाता है। नियम-कानून, संविधान का आसरा तो तब लिया जाता है जब आम इंसानों के बीच यह न्याय दम तोड़ता दिखता है या फिर अन्याय सर चढ़कर बोलता दिखता है। निश्चित रूप से ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में आए 20 आम आदमी पार्टी के विधायकों की एक व्यक्ति के रूप में न्याय करने की नैसर्गिक आदत ने दम तोड़ा था और एक मुख्यमंत्री के रूप में अरविन्द केजरीवाल ने इस अन्याय को होने दिया, तभी मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा। मगर, चुनाव आयुक्त के तौर पर एके ज्योति ने जो न्याय सामने रखा है, वह आत्मा की आवाज़ का गला घोंटता हुआ दिख रहा है। लोकतंत्र चीखता हुआ महसूस हो रहा है।
पहले ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का दायरा तो तय हो
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट को परिभाषित करना अभी तक सम्भव नहीं हो पाया है। एक जनप्रतिनिधि किसी दूसरे पद पर भी है और वह लाभ का पद है, तभी वह कानून की नज़र में गुनहगार है। नकद सैलरी का लाभ या सुविधाएं या फिर दोनों इस दायरे में आते हैं, इस पर बहस है। इस बहस में उन 20 विधायकों का पक्ष भी सुना जाना चाहिए था। चुनाव आयोग ने उन्हें मौका दिया, मगर उन विधायकों ने इस मौके को जानबूझकर गंवाया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इसके लिए इन विधायकों को बहुत सही फटकार लगायी है। मगर, इनकी बात सुनने से मना नहीं किया है। आम विधायकों ने चुनाव आयोग को सहयोग नहीं किया, इसलिए चुनाव आयुक्त कोई न कोई फैसला करके ही रिटायर हों, यह कैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। बाद के मुख्य चुनाव आयुक्त भी इस मामले पर फैसला ले सकते थे।
जनप्रतिनिधि की अहमियत चुनाव आयोग से बेहतर कोई नहीं जानता
चुनाव आयोग से ज्यादा इस बात की अहमियत कौन समझ सकता है कि एक जनप्रतिनिधि चुनने में जनता को कितनी मशक्कत करनी पड़ती है। हजारों-लाखों मतदाता पूरी तरह मंथन करने के बाद सभी उम्मीदवारों में एक योग्य उम्मीदवार को चुनता है। इसलिए एक जनप्रतिनिधि में मतदाताओं की सहमति की आत्माएं होती हैं। इन आत्माओं का कत्ल करने से पहले चुनाव आयोग को हड़बड़ी कतई नहीं दिखानी चाहिए थी। वह भी एक जनप्रतिनिधि नहीं, पूरे 20 जनप्रतिनिधि।
20 सीटों पर उपचुनाव नहीं ‘लघु चुनाव’ होंगे
चुनाव आयोग जानता है कि किसी विधानसभा की करीब एक तिहाई सीटों पर उपचुनाव नहीं हुआ करते। इसे उपचुनाव नहीं, लघु चुनाव कहेंगे। लेकिन, लघु चुनाव का कोई प्रावधान है नहीं। नया संकट खड़ा होगा जब उपचुनाव की घोषणा होगी। उपचुनाव की परिभाषा पर विचार किया जाएगा। यह संकट तो अधूरा छोड़कर रिटायर हो रहे हैं मुख्य चुनाव आयुक्त। इसलिए उन्होंने रिटायरमेंट से पहले मामले को सुलझाया कहां। उन्होंने तो मामले को उलझा दिया।
घोर अनैतिकता के युग में नैतिकता का बोझ
जिस सरकार की 66 में से 20 विधायक अयोग्य हो जाएं, उस सरकार पर नैतिकता का बोझ भी आ गिरेगा। विरोधी दलों ने नैतिकता के आधार पर मुख्यमंत्री केजरीवाल से इस्तीफे की मांग भी रख दी है। मगर, नैतिकता का सवाल तो खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल उठा रहे हैं। हाल ये है कि अब संकट में है दिल्ली की विधानसभा। संकट में है आप सरकार। संकट में आम आदमी पार्टी है। संकट में हैं मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल। चुनाव आयोग जैसी संस्था इस किस्म की अराजकता पैदा करने के लिए नहीं होती या नहीं होनी चाहिए।
सारी उम्मीद अब नैतिकता से
जब नैतिकता टूटने लगती है, तो इसकी बात सबसे ज्यादा होती है। बहुत कुछ उसी तरह जब पाप बढ़ने लगता है तो मंदिर जाने वालों की तादाद बढ़ जाया करती है। कांग्रेस और बीजेपी कह रही है कि अगर नैतिकता है तो अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दें। आम आदमी पार्टी कह रही है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने नैतिकता नहीं दिखलायी है। वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने पहुंचे 6 आप के विधायकों को अदालत ने यह करते हुए फटकार लगायी है कि आयोग के बुलाने पर वे चुनाव आयोग के पास क्यों नहीं गये? और, अब किस मुंह से अदालत आए हैं? यानी अदालत ने आप विधायकों की नैतिकता पर सवाल उठाया है। सारी उम्मीद नैतिकता से है।
अदालत से राय लेने की प्रक्रिया शुरू हो
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जुड़ा 20 विधायकों की अयोग्यता का मुद्दा आखिरकार अदालत में ही तय होगा। इसलिए अच्छा ये होता कि ऐसे मामलों में चुनाव आयोग जैसी संस्था अदालत की राय ले लिया करे या ऐसा करने का प्रचलन शुरू करें। इससे वक्त भी बचेगा, विश्वसनीयता भी। अनावश्यक राजनीतिक अस्थिरता की ओर धकेल देने की स्थिति भी पैदा नहीं होगी। फिलहाल चुनाव आयुक्त ने रिटायरमेंट से पहले जो फैसला लिया है उसकी नैतिकता सवालों के घेरे में है।

By 
KUMARPREMJEE
Journalist, Professor, Columnist, Liberal, Humanitarian, Lover of Pro- people Journalism, Democratic in thought

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