Wednesday 15 August 2018

आशुतोष ने दिया इस्तीफा, गोपाल राय जायेंगे मनाने

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Delhi News Dated 15/08/2018
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टीवी पत्रकारिता के चर्चित संपादक और एंकर की कुर्सी छोड़कर राजनीति में आए आशुतोष ने राजनीति से तौबा करने का फैसला किया है . करीब चार साल तक केजरीवाल की पार्टी के प्रमुख चेहरों में एक रहे आशुतोष ने पार्टी छोड़ दी है . इस्तीफा दे दिया है .
उधर दूसरी तरफ आप नेता , और दिल्ली प्रभारी गोपाल राय का ब्यान आया है की वे आशुतोष से मिलकर इस मामले पर बात करेंगे | जाहिर है की आम आदमी पार्टी अपने नेता को खोना नही चाहती | वहीँ सोशल मीडिया पर भी पार्टी के समर्थको ने आशुतोष से अपने फैसले पर दोबारा विचार करने की मांग और गुजारिश की है |
सांसद संजय सिंह ने भी कहाज़िंदगी में एक अच्छे दोस्त, एक सच्चे इन्सान, एक भरोसेमन्द साथी के रूप में जी से मेरा रिश्ता जीवन पर्यन्त रहेगा, उनका पार्टी से अलग होना मेरे लिये एक हृदय विदारक घटना से कम नही।
कौन थे आशुतोष
जनवरी 2004 में आईबीएन सेवन ( अब न्यूज 18) के मैनेजिंग एडिटर पद से इस्तीफा देकर आशुतोष केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे . सियासी चोले में करीब साढ़े चार बिताने के बाद आशुतोष ने वापस ‘अपनी दुनिया’ में लौटने का फैसला किया है . यानी पत्रकारिता और लेखन की दुनिया में .
जानकारी के मुताबिक आशुतोष पिछले कुछ महीनों से पार्टी छोड़ने का मन बना रहे थे . उन्होंने पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल समेत बाकी नेताओं को अपनी मंशा बता भी दी थी लेकिन उन्हें मनाने की कोशिशें की जा रही थी , लेकिन अब आशुतोष और केजरीवाल के रास्ते अलग हो चुके हैं . पार्टी की तरफ से औपचारिक ऐलान कभी भी हो सकता है 
क्या था विवाद 
 कहा जा रहा है कि आशुतोष अपनी पार्टी के कामकाज और तौर-तरीकों से बेहद नाखुश थे . सालों पहले जो सोचकर वो राजनीति में आए थे , उनकी पार्टी उस सोच से उन्हें कोसों दूर होती दिखने लगी थी . आशुतोष और केजरीवाल में तल्खी की खबर तब भी आई थी , जब दिल्ली के खाते से तीन उम्मीदवारों को आप की तरफ से राज्यसभा में भेजा जाना था . अमर उजाला के मुताबिक - ‘केजरीवाल ने सुशील गुप्ता जैसे उद्योगपति को टिकट दिया था। साथ ही वह आशुतोष और संजय सिंह को राज्यसभा भेजना चाहते थे लेकिन आशुतोष ने स्पष्ट कहा कि उनका जमीर उन्हें सुशील गुप्ता के साथ राज्यसभा जाने की इजाजत नहीं देता है. चाहें उन्हें टिकट मिले या न मिले, सुशील गुप्ता को राज्यसभा नहीं भेजा जाना चाहिए . तब केजरीवाल ने उनकी जगह चार्टर्ड अकाउंटेंट एनडी गुप्ता का नामांकन करा दिया . हालांकि एनडी गुप्ता और सुशील गुप्ता दोनों ही आप के सदस्य नहीं थे . इसके बाद से ही आशुतोष राजनीति में निष्क्रिय हो गए थे . ‘ 
आशुतोष ने अभी तक अपनी तरफ कोई बयान नहीं दिया है , न ही मीडिया के सामने अपना पक्ष रखा है लेकिन माना यही जा रहा है कि कई मुद्दों पर पार्टी के भटकाव से वो खिन्न थे और यही वजह उनके इस्तीफे के पीछे भी है . पहले भी केजरीवाल पर उनकी पार्टी पर ऐसे आरोप पार्टी नेताओं की तरफ से ही लगाए जा चुके हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलकर जनता के बीच लोकप्रिय हुए केजरीवाल की पार्टी अब उन मकसदों को ताक पर रख सियासत में बने रहने के लिए कई तरह के समझौते कर रही है . उन मुद्दों से समझौते करके सियासत में टिकी रहना चाहती है , जिन मुद्दों की वजह से इस पार्टी का जन्म हुआ था . पार्टी के शीर्ष नेताओं ने सत्ता हासिल करने के लिए जिन -जिन नेताओं पर आरोप लगाए , उन सबसे माफी मांग ली . अन्ना आंदोलन से निकलकर पार्टी बनने और दिल्ली में सरकार बनाने तक के दौरान केजरीवाल और बाद के केजरीवाल में काफी फर्क आ गया .वो वैसे ही नेता बन गए , जैसे नेताओं के खिलाफ अलख जगाकर वैकल्पिक राजनीति की नींव रखने की बात कही गई थी . ऐसे ही आरोप प्रशांत भूषण , योगेन्द्र यादव और कुमार विश्वास समेत कई नेता पहले भी लगा चुके हैं . 
 टीवी न्यूज की दुनिया में अपने तेवर और अपनी आक्रामक पत्रकारिता के दम पर सालों तक धाक जमाए रखने वाले आशुतोष केजरीवाल की पार्टी ज्वाइन करने से पहले तक टीवी के चर्चित चेहरों में से एक थे . संपादक थे . एंकर थे . स्तंभ लेखक थे . धार वाले पत्रकार थे . एक दिन अचानक उन्होंने टीवी संपादक की लाखों की नौकरी छोड़कर केजरीवाल की पार्टी का हिस्सा बनने का फैसला करके सबको चौका दिया था . पार्टी ने उन्हें हाथों-हाथ लिया . उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया . रैलियों में उनके भाषण होने लगे . केजरीवाल के साथ हमेशा देखे जाने लगे . उसी दौरान लोकसभा चुनाव हुए और आशुतोष चांदनी चौक से आप के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे . सामने मुकाबले में बीजेपी के दिग्गज हर्षवर्धन जैसे नेता थे , फिर भी आशुतोष तो तीस लाख से ज्यादा वोट तो मिले लेकिन एक लाख से हार गए . उसके बाद भी आशुतोष पार्टी में लगातार सक्रिय रहे .
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मोदी के खिलाफ केजरीवाल की लड़ाई के सिपहसालार बने रहे . पार्टी को मौके -बेमौके अपने आक्रामक अंदाज में डिफेंड करते रहे . लोकसभा चुनाव में दिल्ली में खाता खोलने से भी महरुम रही आम आदमी पार्टी लोकसभा में शिकस्त के दस महीने बाद ही फरवरी 2015 में 67 सीटों के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई थी . आशुतोष लगातार पार्टी के साथ हर मोर्चे पर खड़े और लड़ते दिखे . टीवी चैनलों पर पार्टी के प्रमुख चेहरे की तरह दिखते रहे . अंदर खाने अगर कुछ मतभेद थे भी , तो कभी बाहर उजागर नहीं हुए . पिछले साल के आखिरी महीनों में जब आम आदमी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवारों के नामों की चर्चा हो रही थी , तब भी उनका नाम लगातार चर्चा में था हालांकि अपने तौर पर हमेशा वो रेस में होने से इंकार करते रहे या पार्टी के फैसले का हवाला देकर चुप्पी साधे रहे .
आखिरी वक्त में जब उम्मीदवारों का ऐलान हुआ , तब पहली बार ये बात बाहर आई कि आशुतोष ने सुशील गुप्ता जैसे शख्स को राज्यसभा भेजे के खिलाफ पार्टी के भीतर अपनी तीखी राय रखी थी . केजरीवाल से उनके मतभेद हुए थे . उनका कहना था कि ऐसे शख्स को आम आदमी पार्टी जैसे संगठन का नुमाइंदा बनाकर राज्यसभा में भेजना गलत होगा लेकिन उनकी एक नहीं चली . हालांकि तब तक सुशील गुप्ता और संजय सिंह के साथ आशुतोष का नाम भी तय था . आशुतोष के करीबी नेता के मुताबिक आशुतोष ने सुशील गुप्ता के साथ राज्यसभा जाने पर सख्त एतराज किया और यहीं से उनकी जगह चार्टर्ड अकाउंटेंट एनडी गुप्ता की इंट्री हो गई . तीनों राज्यसभा चले गए और आशुतोष उसके बाद से करीब -करीब निष्क्रिय हो गए . इस बीच आशुतोष द क्विंट और एनडीटीवी की वेबसाइट के लिए हिन्दी और अंग्रेजी में लगातार लिखते रहे . कुछ महीनों से वो अपनी एक किताब पर भी काम कर रहे हैं . माना जा रहा है कि राजनीति से मोहभंग होने के बाद अब आशुतोष पत्रकारिता और लेखन की उसी दुनिया का हिस्सा रहना चाहते हैं , जिसे छोड़कर वो केजरीवाल के साथ चले गए थे . 

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